अंशौपचारिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व (NEED AND IMPORTANCE OF NON-FORMAL EDUCATION)
अशौपचारिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व का अनुकूलन निम्नवत् है
1. प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिक विस्तार ।
2. प्रौद असाक्षरता का उन्मूलन
3. जनतंत्रीय व्यवस्था की व्यापक तथा अनिवार्य चुनौतियों का सामना
4. शिक्षा के साथ-साथ अर्जन और स्वावलम्बन की सुविधायें।
5. आर्थिक तंगी या अन्य किसी कारण से बीच में ही जिनकी शिक्षा बाधित हो गयी, उनके लिए महत्वपूर्ण ।
6. नई तकनीकी तथा ज्ञान से परिचय हेतु।
7. सामाजिक तथा आर्थिक पिछड़े वर्गों हेतु शैक्षिक सुविधायें उपलब्ध कराने हेतु महत्वपूर्ण ।
8. सुदूर इलाकों में स्थित व्यक्तियों हेतु शिक्षा सुलभ कराना।
9. ग्राम तथा नगर के मध्य व्याप्त शिक्षा के मध्य असमानता में कमी करना।
10. व्यावसायिक दक्षता एवं कौशल विकास की शिक्षा के द्वारा बेरोजगारी की समाप्ति
11. ऐसे व्यक्ति जो अपनी व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि करना चाहते हो या जो नौकरी के साथ-साथ महत्वपूर्ण अध्ययन करना चाहते हैं।
12. नियमित पाठ्यक्रम में किसी भी कारणों से जो महत्वपूर्ण प्रविष्ट नहीं हो पाते हैं।
13. अशौपचारिक शिक्षा महिलाओं की शैक्षिक उन्नति हेतु अत्यावश्यक है, क्योंकि पारिवारिक कारणों से अक्सर महिलाओं की औपचारिक पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है।
14. स्त्री-पुरुष साक्षरता के मध्य अन्तर में कमी।
15. जीवन में उन्नति के मार्ग प्रशस्त करने में अशौपचारिक शिक्षा महत्वपूर्ण है।
16. अशौपचारिक शिक्षा के द्वारा अपनी रुचि, योग्यता तथा आवश्यकता के अनुरूप पाठ्यक्रमों में प्रविष्ट हो सकता है, इस दृष्टि से भी यह शिक्षा आवश्यक और महत्वपूर्ण है।
17. अशौपचारिक शिक्षा के द्वारा समय इत्यादि की बाध्यता नहीं होने से यह अन्त्योपयोगी है।
18. अशौपचारिक शिक्षा औपचारिक शिक्षा में नामांकित न होने वालों की निराशा को आशा में परिवर्तित करती है।
19. अपनी नमनीय (Flexible) प्रकृति के कारण अंशौपचारिक शिक्षा के द्वारा शिक्षा के प्रति लोगों में झुकाव उत्पन्न किया जा रहा है।
20. अंशौपचारिक शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा पर बढ़ते दबाव और उसकी वजह से होने वाले दोषों को रोकने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
बाघाएँ एवं सीमाएँ (BARRIERS AND LIMITATIONS)
अशौपचारिक शिक्षा आज सम्पूर्ण विश्व की एक आवश्यकता के रूप में स्थान ग्रहण कर रही है, परन्तु आज भी इसको अपने, इसके विस्तार और क्रियान्वयन के क्षेत्र में कुछ बाधाएँ है और इसी कारण इस प्रकार की शिक्षा का विषय क्षेत्र सीमित रह जाता है। अशौपचारिक शिक्षा की बाधाएँ तथा सीमाएँ निम्नवत है
1. वित्तीय कमी
2. जागरूकता का अभाव
3. औपचारिक शिक्षा से कमतर ऑकना
4. शर्म की भावना
5. सभी प्रकार के पाठ्यक्रमों हेतु उपयोगी नहीं
6. व्यावहारिक ज्ञान का अभाव
7. फर्जी संस्थाएँ
8. रणनीतिक कमी
1. वित्तीय कमी-अशौपचारिक शिक्षा यद्यपि पर्याप्त लचीली है फिर भी इसको भली प्रकार संचालित करने हेतु पर्याप्त मात्रा में मानवीय तथा भौतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिसके अभाव में यह शिक्षा भली प्रकार अपने कार्यों का सम्पादन और उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर पाती है।
2. जागरूकता का अभाव- अंशौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र की एक बाधा है कि लोग न तो शिक्षा के प्रति जागरूक है और न ही उन्हें इस विषय में जागरूकता है कि अशौपचारिक अभिकरणों के द्वारा भी औपचारिक शिक्षा के कार्य को पूर्ण किया जा सकता है। इस प्रकार अशौपचारिक शिक्षा के विषय में जागरूकता न होने पर शिक्षा बाधित हो जाती है।
3. औपचारिक शिक्षा से कमतर आँकना-अशौपचारिक शिक्षा के लिए इसलिए भी लोग आगे नहीं आते हैं, क्योंकि वे इसे औपचारिक शिक्षा से कमतर मानते हैं। औपचारिक शिक्षा ग्रहण न कर पाने की स्थिति में लोग पढ़ाई छोड़ देते हैं, परन्तु अशौपचारिक शिक्षा ग्रहण करना ठीक नहीं समझते, जिससे अपव्यय और शिक्षा के स्तर में न्यूनता आती जा रही है। कुछ नौकरियों इत्यादि के साक्षात्कार मे भी अशौपचारिक शिक्षण ग्रहण करने वाले व्यक्ति की प्रतिभा का समुचित मूल्याकन नहीं किया जाता है, पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर जिससे यह शिक्षा बाधित हो जाती है।
4. शर्म की भावना–अंशौपचारिक शिक्षा में आयु सीमा तथा समय की छूट होने के बाद भी विशेषतः ग्रामीण क्षेत्र और महिलाओं द्वारा इसे न अपनाने का एक कारण शर्म की भावना भी है। शर्म के कारण लोग बढ़ती आयु में चाहकर भी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं, जिससे अशौपचारिक शिक्षा के विस्तार में बाधा उत्पन्न हो रही है।
5. सभी प्रकार के पाठ्यक्रमों हेतु उपयोगी नहीं कहा गया है कि वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति औपचारिक शिक्षा के बिना कदापि नहीं हो सकती है और अंशापचारिक शिक्षा में इसके विपरीत शिक्षा प्रदान की जाती है। स्वाध्याय तथा मनन इत्यादि विधियाँ वैदिक काल से ही प्रचलित रही है, परन्तु इन्हें गुरु के मार्ग-निर्देशन और सशरीर उपस्थिति में ही भली प्रकार किया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी स्तर और सभी विषयों का ज्ञान अंशौपचारिक शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को नहीं किया जा सकता। उदाहरणतः चिकित्सा विज्ञान, प्रविधि तथा उच्च स्तरीय साहित्य की शिक्षा अशोपचारिक शिक्षा के द्वारा भली प्रकार प्राप्त नहीं की जा सकती है। इस प्रकार अशौपचारिक शिक्षा की कुछ सीमायें हैं।
6. व्यावहारिक ज्ञान का अभाव अंशौपचारिक शिक्षा वर्तमान में ज्ञान-पिपासा शान्त करने की अपेक्षा केवल उपाधि प्राप्त करने का साधन मात्र बन गयी है और इसके द्वारा व्यावहारिक ज्ञान भी। प्राप्त नहीं होता, जिसका व्यक्ति अपने व्यावहारिक जीवन में प्रयोग कर सके। इस प्रकार व्यावहारिक ज्ञान के अभाव के कारण यह शिक्षा सीमित हो जाती है।
7. फर्जी संस्थाएँ अशौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में तमाम ऐसी संस्थायें कार्य कर रही है. जिनकी वैधता नहीं है। इससे छात्रों का भविष्य अन्धकारमय हो जाता है। फर्जीवाड़े का यह कार्य फर्जी वेबसाइट से लेकर पैसे के मामले तक चल रहा है, जिसके कारण लोग इस शिक्षा के प्रति आकृष्ट होने से डरते हैं।
8. रणनीतिक कमी- सार्वभौमिक शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति में अशौपचारिक शिक्षा महत्वपूर्ण कड़ी है, परन्तु इस शिक्षा के प्रसार तथा उसके लिए लोगों को जागरूक बनाने, स्थान-स्थान पर अशौपचारिक शिक्षा केन्द्रों की स्थापना इत्यादि कार्यों के पीछे रणनीतिक कमी है जिससे इसके विस्तार में बाधा उत्पन्न हो रही है।
प्रभाविता हेतु सुझाव (SUGGESTIONS FOR INFLUENCING)
अशौपचारिक शिक्षा वर्तमान शिक्षा की आवश्यकता को पूर्ण करने, लोगों की आवश्यकता तथा सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए अत्यन्त लचीली है। इसी कारण यह शिक्षा आज औपचारिक शिक्षा का एवं सशक्त विकल्प बनती जा रही है। अशौपचारिक शिक्षा वर्तमान प्रजातांत्रिक समाज की स्थापना और उसके मूल्यों को साकार करने हेतु अन्त्योपयोगी सिद्ध हो रही है। यह शिक्षा पढ़ाई छोड़ने वाले पढ्ने वाले नौकरी करने वाले, बेरोजगार श्रमिक, ज्ञान की जिज्ञासा शान्त करने वाले स्त्री तथा पुरुष सभी के लिए महत्वपूर्ण है। कई विषयों में तो यह औपचारिक शिक्षा से भी अधिक व्यापक है क्योंकि औपचारिक शिक्षा जहाँ आकर समाप्त होती है. यह वहाँ से प्रारम्भ होती है। इसका विस्तार मनुष्य के समग्र जीवन में है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस शिक्षा को ग्रहण कर सकता है। अशौपचारिक शिक्षा को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु कुछ सुझाव निम्नवत् हैं जिससे महिलाओं की अशौपचारिक शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित हो सके:-
1. पर्याप्त मात्रा में मानवीय तथा भौतिक संसाधनों की व्यवस्था हेतु धन का आबंटन।
2. धोखाधड़ी तथा फर्जीवाड़े को कम करने हेतु प्रयास एवं उचित रणनीतियों का निर्माण।
3. स्थान-स्थान विशेषतः शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े. ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में अशौपचारिक शिक्षा केन्द्रों की स्थापना।
4. अशौपचारिक शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए लोगों को जागरूक बनाना।
5. इस शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए इसके महत्व से लोगों को अवगत कराना।
6. महिलाओं की विशिष्ट प्रकार की आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए पाठ्यक्रम का निर्माण करना ।
7. अंशौपचारिक शिक्षा को अधिक प्रभावी बनाने हेतु व्यावहारिक ज्ञान पर बल । 8. इस शिक्षा को प्रभावी बनाने हेतु इसे तकनीकी तथा शैक्षिक नवाचारों से युक्त करना ।
9. इस शिक्षा की प्रभाविता के लिए शिक्षण सामग्री तथा पाठ्यक्रम इत्यादि का निर्माण सावधानीपूर्वक करना
10. सुयोग्य अध्यापकों तथा परामर्शदाताओं की नियुक्ति
11. औपचारिक तथा अनौपचारिक अभिकरणों के साथ समन्वय तथा सामंजस्य स्थापित करना।
12. गतिशील शिक्षण विधियों तथा नवाचारों का प्रयोग।
13. व्यक्तिगत निर्देशन एवं परामर्श ।
14. गुणवत्ता पर बल देकर।
15. वैविध्यतापूर्ण पाठ्यक्रम जिसमें सामाजिक आवश्यकताओं पर बल दिया जाना।
निष्कर्ष (CONCLUSION)
अंशौपचारिक शिक्षा इस प्रकार वर्तमान विश्व की आवश्यकता बन गयी है। यह जिन्होंने विद्यालयी शिक्षा प्राप्त की है, उनके लिए भी महत्वपूर्ण है और जिन्होंने विद्यालयी शिक्षा प्राप्त नहीं की है या किन्हीं कारणों से बीच में ही छोड़ दी है. उन सभी के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। नवीन ज्ञान, तकनीकी ज्ञान तथा विज्ञान से परिचय पाने में जहाँ यह शिक्षा सहायक है वहीं इस शिक्षा द्वारा व्यावसायिक उन्नति, रुचियों तथा योग्यताओं में वृद्धि, जीवन-दक्षता अवकाश के समय का सदुपयोग किया जा रहा है। महिलाओं के सन्दर्भ में यह शिक्षा और भी अधिक उल्लेखनीय हो जाती है क्योंकि अपव्यय तथा अवरोधन और निर्विद्यालयीकरण की सर्वाधिक शिकार महिलायें होती हैं, परन्तु अशौपचारिक शिक्षा में आयु समय तथा क्षेत्रादि की बाध्यता न होने के कारण यह शिक्षा ग्रहण कर महिलाये स्वावलम्बी बन रही है, शिक्षित हो रही हैं और अपनी व्यावसायिक दक्षता तथा रुचि के अनुरूप पाठ्यक्रमों का चयन कर सर्वांगीण विकास कर रही हैं। इस प्रकार अंशौपचारिक शिक्षा महिलाओं के लिए उपादेय है और इस शिक्षा तक महिलाओं की संख्यात्मक पहुँच सुनिश्चित हो रही है फिर भी अभी इस दिशा में काफी कुछ करना शेष भी है।
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