शिक्षा का अर्थ तथा क्षेत्र
शिक्षा जीवनपर्यंत चलनेवाली सतत् प्रक्रिया है। मनुष्य शैशवावस्था से वृद्धावस्था तक कुछ-न-कुछ सीखता ही रहता है। शिक्षा जीवन सापेक्ष है। प्रत्येक के विचारकों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने अपने युग की युग आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा की परिभाषा दी है।
प्राचीन भारत में शिक्षा को आत्मज्ञान और आत्म प्रकाशन का साधन माना जाता था। प्राचीन चीन में शिक्षा द्वारा व्यक्ति को समाजिक व्यवस्था का आदर करने का प्रशिक्षण दिया जाता था। प्राचीन यूनान में व्यक्ति के राजनैतिक, मानसिक, नैतिक और सौन्दर्य ज्ञान के लिए शिक्षा दी जाती थी। प्राचीन रोम में शिक्षा व्यक्ति को जीवन के व्यावहारिक कार्यों के लिए तैयार करती थी। आज भी साम्यवादी देशों में शिक्षा का जो उद्देश्य है, वह अमेरिका, ब्रिटेन आदि पूँजीवादी देशों में नहीं हैं। इसलिए शिक्षा का कोई निश्चित अर्थ या तात्पर्य निर्धारित नहीं किया जा सकता।
संस्कृत भाषा में शिक्षा ‘शिक्ष' धातु से उत्पन्न मानी जाती है। वैदिक साहित्य के 'शिक्षा' धातु का 'अर्थ 'देना' होता है। उस समय 'शिक्षा' शब्द से उस प्रक्रिया को बोध होता था । जिसके द्वारा समाज के बड़े या गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे। 'ज्ञान' शब्द में उन सभी उपलब्धियों का सन्निवेश है, जिन्हें मनुष्य ने अपने विकास क्रम में प्राप्त किया था। इस तरह शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसके द्वारा बालक अपनी • सांस्कृतिक विरासत से परिचित होता था और उसके संरक्षण में अपना योगदान देता था।
'शिक्षा' शब्द का पर्यायवाची अंग्रेजी शब्द एजुकेशन (Education) है जिसकी उत्पत्ति लैटिन के तीन शब्दों में बताई जाती है—एजुकेयर (Educare), एजुकीयर (Educere) तथा एजुकेटम (Educatum)।
एजुकेयर से पालन-पोषण, एजुकीयर से प्रेरणा तथा एजुकेटम से शिक्षण अथवा प्रशिक्षण का भाव निकलता है। इसमें से एजुकेयर तथा एजुकेटम बालक के बहिर्मुखी विकास तथा एजुकीयर से अन्तर्मुखी विकास माना जाता है।
बालक के सन्तुलित विकास के लिए अन्तर्मुखी तथा बहिर्मुखी दोनों प्रकार का विकास चाहिए । इसीलिए रॉस ने कहा है, "शिक्षा बच्चों के प्राकृतिक विकास में रूपान्तर की क्रिया है।”
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी कहा है, "उच्चतम शिक्षा वह शिक्षा है जो हमें केवल सूचना ही नहीं देती वरन् हमारे जीवन के समस्त पहलुओं को सम अथवा सुडौल बनाती है।”
शिक्षा शिक्षण से व्यापक है, क्योंकि वह जीवन की तैयारी है तथा जीवनपर्यंत चलनेवाली एक प्रक्रिया है। शिक्षा के क्षेत्र की व्यापकता को ध्यान में रखकर शिक्षा के अर्थ को दो भागों में बाँटा गया है:-
(i) शिक्षा का संकुचित अर्थ तथा
(ii) शिक्षा का व्यापक अर्थ ।
(i) शिक्षा का संकुचित अर्थ संकुचित अर्थ में शिक्षा से अभिप्राय उस शिक्षण से है जो स्कूल तथा कॉलेज में छात्रों को प्रदान किया जाता है। ऐसी शिक्षा को एक प्रकार से औपचारिक शिक्षा भी कह सकते हैं। ऐसी शिक्षा का प्रारंभ तब होता है जब छात्र स्कूल में प्रवेश करता है। और उसका अन्त तब होता है जब वह विश्वविद्यालय की पढ़ाई समाप्त करके बाहर आता है। ऐसी शिक्षा वर्गगत (Graded) होती है, बालक को एक निश्चित समय तक एक निश्चित योजना के अनुसार दी जाती है
शिक्षा के संकुचित अर्थ के संबंध में जे. एस. मेकेंजी ने कहा है, “संचित अर्थ में शिक्षा का अभिप्राय हमारी शक्तियों से विकास और उन्नति के लिए चेतनापूर्वक किए गए किसी भी प्रयास से हो सकता है।"
(ii) शिक्षा का व्यापक अर्थ विस्तृत अर्थ में शिक्षा का विकास की उसी प्रक्रिया से लिया जाता है जो एक बालक जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त प्राप्त करता है। इसके अन्तर्गत सभी प्रकार का ज्ञान एवं अनुभव आ जाता है जो बालक वृद्धि पाते हुए अपने शैशव, बचपन, यौवन तथा वृद्धावस्था में स्कूल, घर, समाज, समाजपथ, पुस्तकालय आदि साधनों से प्राप्त करता है, क्योंकि इस प्रकार की शिक्षा में किसी विशेष प्रकार का पाठ्यक्रम अथवा कक्षा का बंधन नहीं रहता।
इसके संबंध में लॉज (Lodge) ने कहा है, "विस्तृत अर्थों में यह कहा जा सकता है कि मानव सभी प्रकार के अनुभवों से कुछ सीख जाता है।”
व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती है और जीवन के प्राय: प्रत्येक अनुभव से उसके भंडार में वृद्धि होती है। अतः शिक्षा के व्यापक अर्थ के अनुसार हमारा जीवन ही शिक्षा है और शिक्षा ही जीवन है।
अतः शिक्षा के संकुचित एवं विस्तृत अर्थ एक-दूसरे के विरोधी नहीं, प्रत्युत पूरक है, जीवन के समग्र विकास के लिए दोनों ही प्रकार की शैक्षिक धारणा आवश्यक है।
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