मातृभाषा के उद्देश्य
राष्ट्र के पुनर्निमाण के कार्य में भाषा की शिक्षा का विशिष्ट महत्व है। इसके माध्यम से हम अनेकानेक विषयों का अध्ययन करते हैं। मातृभाषा ही हमारे चिंतन का अधारशिला है।
वेद मंत्र में यह कहा गया है "मातृभाषा, मातृसभ्यता और मातृभूमि तीनों सुखकारिणी स्थिर रूप देवियों हमारे हृदयासन पर विराजती रहे।"
भाषा मनुष्य जगत की मूल्यवान संपदा है। सृष्टिकर्ता ने भाषा का वरदान हम मानवों को दिया है। आज के समय बिना भाषा के संसार को चलाना पूर्ण असंभव कार्य है। सच है:-
अंधकार है देश जहाँ आदित्य नहीं।
मुर्दा है वह देश जहाँ साहित्य नहीं ॥
उच्च कोटि के साहित्य के लिए उच्च कोटि की भाषा अपेक्षित है। भाषा और साहित्य के निकट का संबंध है। 'भाषा चित्तवृत्ति की अभिव्यंजना का माध्यम और साहित्य इसका आधार है।'
हम किसी कार्य का लक्ष्य निर्धारित करते हैं। बिना लक्ष्य निर्धारित के हमारे स्थिति बिना पतवार की नौका के सदृश्य होती है। किसी भी विषय के शिक्षण-उद्देश्यों की रूपरेखा बनाते समय भाषा की प्रकृति एवं उसकी जीवनोपयोगिता पर विचार करना आवश्यक हो जाता है।
भाषा मानव जीवन की एक सरल प्रक्रिया है। इसे बालक खेल-खेल में, बात-बात में सीख जाता है और कालक्रम में इसका विकास होने लगता है। भाषा प्रयोक्ता, शिशिक्षु के अंतर्मन में विकसित होती है। भाषा की सिखाई में अनौपचारिक ढंग से निर्वाह करने से भाषा सीखने में मदद मिलती है। भाषा सीखते समय हर्ष और आनंद की अनुभूति होनी चाहिए।
भाषा की सत्ता शून्य में नहीं रहती है, इसके सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, पारिवारिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक आधार होते हैं और सीखने-सीखानेवालों की अभिरूचि इन आधारों से बढ़ती है। भाषा एक विषय मात्र नहीं है, वह सभी विषयों की पढ़ाई का आधार है। विस्तार में, भाषा या मातृभाषा हिंदी की विस्तार चर्चा करने के पूर्व मातृभाषा शिक्षा के उद्देश्यों की संक्षेप में जानकारी आवश्यक है।
1. मूल भाषा को स्पष्ट ढंग से समझने की दक्षता का विकास।
2. शुद्ध, स्पष्ट, सरल, प्रभावोत्पादक भाषा में अपने भावों, विचारों एवं अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की शक्ति का विकास। अपने अनुभवों को अभिव्यक्त करने की शक्ति का विकास।
3. छात्रों में लिखने की दक्षता का विकास।
4. अर्जित ज्ञान को अपनी भाषा में व्यक्त करने की दक्षता का विकास।
5. भाषा के चारों कौशलों (i) सुनना, (ii) बोलना, (iii) पढ़ना तथा (iv) लिखना का विकास।
6. मातृभाषा में लिखित साहित्य को पढ़कर आस्वादन करने की दक्षता का विकास।
7. उसकी रचना, मनःशक्ति को विकसित कर लेखनीय प्रतिभा का विकास ।
8. तर्क चिन्तन, निर्णय शक्ति का विकास।
9. उच्चरित भाषा, लिखित भाषा के प्रयोग की क्षमता का विकास ।
10. भाषिक (ध्वनि, शब्द, वाक्य, पद रचना) ज्ञान पक्ष तथा कौशल पक्ष की जानकारी।
11. साहित्यिक पक्ष-ज्ञानात्मक, सौन्दर्य बोधात्मक, विवेचनात्मक शक्ति का विकास ।
0 Comments